मन में यादें भी उमड घुमड रही झिमझिम
कुछ भीनी- भीनी खुशबू और मुस्कान भरी
कुछ बिजली जैसी कडकती फडकती भयावह और डरावनी
अब दोनों तो साथ साथ ही चलेगी रिमझिम रिमझिम
कभी हरियाली कभी अंधड
कभी सब नष्ट-भ्रष्ट
कभी नई कोपलों में जान भरने वाली
विनाश और निर्माण
जन्म और मृत्यु
यही तो रंग है
कभी इंद्रधनुष कभी घना घनघोर कालिमा
इन रास्तों पर चलना ही पडता है
चाहो या न चाहों
बरसात को तो आना ही है
अपनी पूर्ण लाम लश्कर के साथ
हमें भी वैसा ही अनुसरण करना है
कभी सुख कभी दुख
कभी हंसना कभी रोना
कभी जीना कभी मरना
इनके सिवा नहीं है कोई ठिकाना।
No comments:
Post a Comment