आज बाबू टकला हो गया
टकला होकर हल्का हो गया
सोच रहा है क्या बात है
कुछ तो खास है
धीमे - धीमे मुस्करा रहा है
खुश हो रहा है
समझ न पा रहा है
कौन उसके बाल ले गया
शीशे में निहार रहा है
यह अंजाना कौन है
महसूस करता है
मैं ही तो हूँ
यह जानकर खुश
काला टीका शोभ रहा ललाट पर
नजर न लगे
मेरे घर के चिराग पर
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