सांष्टांग दंडवत भी कर ली
चरण स्पर्श भी कर लिया
अच्छी बात है
मन झुका क्या ??
आत्मा से श्रद्धा निकली क्या ??
झुकने के लिए तो
हम झुक जाते हैं
कभी परम्परा के वजह से
कभी दवाब की वजह से
कभी दिखावे की वजह से
इन सब का क्या फायदा??
श्रद्धा से नतमस्तक हो
प्रेम और अपने पन से हो
मन से आदर निकला हो
यह नहीं कि मन में कडवाहट भरी हो
अंतरआत्मा कोस रही हो
मन से अनवांछित शब्द निकल रहे हो
झुके तो मन से
तब तो आशीर्वाद भी फलेगा
यह बात तो दोनों पर लागू होगा
दुआ देनेवाला भी मन से दे
मन में द्वेष और ज्वाला भर कर नहीं
अगर ऐसा न कर सको
तब तो न झुको
न किसी को झुकाओ
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