Wednesday, 13 July 2022

जब ब्याह हुआ

जब ब्याह हुआ
तब घर तो छूटा
माँ- पापा , भाई- बहन तो छुटे
मोहल्ला- दोस्त- पडोसी भी छूटे
यह तो विदित ही है
लेकिन बचपन और लडकपन भी छूट गया
अचानक बडी हो गई 
समझदार हो गई
जिद छूट गया
एडजस्टमेंट करना आ गया
अनचाहे - अंजाने को स्वीकार किया
सहनशीलता आ गई 
दिल में जो बातें लगती थी उन पर ध्यान देना छोड़ दिया
स्वतंत्रता कहीं लुप्त हो गई 
अब अपना नहीं दूसरों  के निर्णय मानना था
गलत को गलत नहीं कहना था
बडो  को जवाब न देना था
वह बेटी जो माँ- बाप के मुंह लगी थी
मुँह बंद कर रखना था
खाना जो मिले चुपचाप खा लेना था
अपन इच्छाओं की तिलांजली देना था
कहने को तो अपना
लेकिन न अपना घर न था
हम बस एक जीते - जागते वैसे इंसान थे
जिसमें अपना कहने को कुछ नहीं था

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