बस कुछ मेरे खास अपनों को छोड़कर
मन तो करता है
प्रेम भी उमडता है
उनकी याद भी आती है
ईश्वर से उनकी सलामती की दुआ भी करती हूँ
पर बातचीत नहीं होती
मन नहीं खुलता
ईगो आ जाता है
कुछ नाराजगी है
कुछ गलतफहमियां है
कुछ बातें हैं
कुछ अनसुलझी है
अब समझ नहीं आता
क्या करू
मन करने पर भी काॅल नहीं होता
न यहाँ से न वहाँ से
उनका भी यही हाल होगा
कोई अपनों के बारे में बुरा कैसे सोच सकता है
कोई पहल नहीं
रास्ता निकल सकता है
एक- दूसरे की मजबूरी हो सकती है
गलतियाँ भी हो सकती है
सारी दुनिया से बात करो
फेसबुक और वट्सअप पर मैसेज करों
अपनों बिना तो मजा नहीं
वह तो एक महज औपचारिकता है
मन के करीब नहीं
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