सब कुछ पहले से बेहतर
पुराने घर की यादें भी तो साथ थी
वह कहाँ भूलने वाली थी
यहाँ की साज - सज्जा सब कुछ अच्छा
वहाँ ऐसा कुछ भी न था
लेकिन वहाँ सबका साथ था
सर पर बडो का हाथ था
निश्चित थे
कहीं भी बैठो
कहीं भी सोओ
कोई औपचारिकता नहीं थी
तब तो जमीन पर बिछी चटाई भी प्यारी लगती थी
आराम की नींद आती थी
तब दीवार न थी
एक ही कमरा
पैर फैलाकर सोने मिल जाएं
वही काफी था
फिर भी कभी कमतरता नहीं भासी
अडोस पडोस का भी यही हाल था
दिखावट नहीं था
आज सब है
पर फिर भी वह बात नहीं है
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