कोई कुछ न कर पाया
कितना दर्द नाक दृश्य
मन आहत हो उठता है
कोई जाता ही है क्यों वहाँ
पानी का बहाव और धबधबा देखने
मौज - मस्ती करने
स्वभाव है मनुष्य का
वह मृत्यु से डरता तो है
पर कभी-कभी उसके करीब चला जाता है
स्वयं ही
उसे यह अंदाजा नहीं होता
जल प्रलय आता है
तब नदी पूरे शबाब पर होती है
वह किसी को नहीं छोड़ती
न जाने क्या क्या लील जाती है
अपने विकराल मुख से
काल के गाल में समा जाते हैं
घर - द्वार उजड जाते हैं
असहाय बन लोग देखते रहते हैं
जल और जीवन देनेवाली
सब खत्म कर डालती है
फिर भी
जल से सदियों का नाता है
जल बिना तो जीवन नहीं
जल नहीं तो जीव नहीं
यह भी तो सत्य है
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