आज यहाँ पग पग पर दुश्शासन और दुर्योधन तो है
पर द्रौपदी की रक्षा के लिए कृष्ण नहीं हैं
उसे तो अब स्वयं ही अपनी रक्षा करनी होगी
शक्तिशाली और मजबूत बनना होगा
अबला नहीं सबला बनना होगा
स्वयं हाथ में हथियार ले सामना करना होगा
आज रामायण युग नहीं है
साधु वेश में रावण तो पग पग पर घात लगाए बैठे हैं
पर उस दशानन के जैसी नैतिकता नहीं है
वहाँ तो लंका में भी सीता सुरक्षित थी
यहाँ घर और पडोस में भी सुरक्षित नहीं हैं
आज तो सीता को सतर्कता बरतनी होगी
लक्ष्मण रेखा किसी भी हाल में पार नहीं करना है
अच्छे-बुरे की पहचान करनी है
किसी पर भी ऑख बंद कर विश्वास नहीं करना है
साधु क्या न जाने किस किस भेष में भेडिए घात लगाए बैठे हैं
नोच खाने को तैयार हैं
युग बदला है
दौर भी बदला है
जब नर - नारी कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं
तब अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी स्वयं पर
कदम कदम पर धोखा है
कदम कदम पर विश्वास घात है
सतर्कता बरतनी है
संभल कर रहना है
अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाना है
नए दौर में नयी कहानी लिखनी है ।
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