Monday, 19 September 2022

सब कुछ बदल गया

सब कुछ बदल गया
बरसात का मिजाज बदल गया
गर्मी का ताप बदल गया
ठंडी भी नहीं है पीछे 
नदी की धार बदल गई
पहाड़ की गरिमा बदल गई 
हवा भी अब वैसी नहीं 
अब सांस लेने के लिए डर
धुआँ  , धूल - धक्कड से भरी हुई 
दूध और घी भी अब वैसा नहीं 
सब्जी और फल में भी विष भरा हुआ 
सबमें मिलावट 
इंसान की तो बात ही मत पूछो 
इन सबका जिम्मेदार वह ही है
वह तो पूरा का पूरा बदल गया है 
नैतिकता,  ईमानदारी अब कोई मायने नहीं 
बस अपनी जेब भरी रही
किसी भी अनैतिक तरीके से
वह ही सबको जहर खिला रहा है
पिला रहा है
लोगों की जान ले रहा है
बदला तो है बहुत कुछ 
तरक्की की सीढियां चढते चढते
वह अपने ही विनाश का निर्माण कर रहा है
चांद न बदला 
सूरज न बदला
बस बदल गया इंसान 

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