जब किसी बच्चे का चेहरा याद करने का मन करता है तब माखन खाते , मुंह पर लपेटे मटकी गिराते याद आ जाते हैं
जब माँ के डांटने- मारने का ख्याल आता है तब माता यशोदा की डांट- मार खाते कान्हा की याद आ जाती है
उन्होंने स्वयं को भगवान दिखाया ही नहीं। साधारण मानव जैसे ही रहे जिसे जन्मते हुए न जाने कितनी कठिनाइयों का सामना करना पडा ।
जिस बच्चे का जन्म ही जेल में हुआ हो । काली अंधेरी घनघोर बरसात में उफनती यमुना जी की लहरों को पार करना पडा हो और किसी दूसरे के घर पालन - पोषण।
प्रेम किया राधा से सखी - सखा रहें गोप और गोपी ।उनके साथ हो लिए गैया चराने । न उन्हें माखन की कमी थी न महंगे खिलौने की तब भी उन्होंने यही रास्ता चुना ।बालपन को जीया भरपूर । राधा से ब्याह नहीं कर सके पर वह हमेशा उनके दिल में रही । कुछ कोस की दूरी पर ही वृंदावन - गोकुल लेकिन फिर कभी वहाँ गए नहीं। हाॅ जीवन भर उसी के इर्द-गिर्द घूमते रहें।
मामा कंस का वध कर माता - पिता को मुक्त किया ।जब बुआ कुंती के ऊपर संकट आया तब अपना धर्म निभाया । रिश्तेदारी थी हस्तिनापुर से , उस नाते जो भी बन पाया किया लेकिन दुर्योधन की हठधर्मिता के आगे कुछ न विकल्प बचा एक युद्ध के सिवा । तब भी दुर्योधन को सौ अक्षौहिणी सेना दी ।
यह कृष्ण ही थे जिन्होंने अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया । अश्वमेघ यज्ञ में जूठे पत्तल उठाए लेकिन जब अन्याय हुआ तब अपनी सखी की लाज बचाने दौड़े आए । अपना विराट रूप दिखाया । महलों का पकवान छोड़ विदुर घर भोजन किया । प्रेम को प्रधानता हमेशा दी ।सुदामा से ऐसी दोस्ती निभाई कि आज भी याद किया जाता है। 99गाली देने वाले शिशुपाल को भी तब तक माफ किया जब तक सौ पूरा नहीं हुआ।
श्राप मिला माता गांधारी का यह तो वे भी जानते थे यह होना ही था ।सहर्ष ग्रहण किया । महाभारत का रचयिता अपने ही समक्ष अपने कुल का नाश होते देख रहा था और मृत्यु भी एक बहेलिए के बाण से हुई।
जीवन का हर कठिन समय बडी सरलता से जीया और अंगीकार किया। गोवर्धन पर्वत उठाने वाला और कालिया दमन करने वाला महाभारत में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की लेकिन जब अपने ही भक्त की प्रतिज्ञा का सवाल आया तो अपनी छोड़ उसकी लाज रखी ।सुदर्शन चक्र उठा भीष्म को मारने दौड़े ।
अपनी ही बहन को अर्जुन के साथ भगवा देना । रुक्मिणी का पत्र पाकर उसका हरण करना और लडाई कर ब्याह करना । प्रेम को प्रधानता दी हमेशा। कुब्जा को भी ।
यहाँ तक कि पूतना जो क्षण भर को माता बनी थी उसको भी तार दिया ।
अगर देखा जाए तो उन्होंने प्रेम को हमेशा तवज्जों दी । माता यशोदा के ही बेटे कहलाए। कर्म के सिद्धांत पर चले ताउम्र । वे ईश्वर थे साधारण मानव नहीं। सामान्य मनुष्य को जो - जो कर्म करना है वह सब उन्होंने किया ।शायद राधा के साथ न्याय नहीं पर यह भी सही नहीं। वे आज भी राधेश्याम ही कहलाते हैं। कितनी भी रानिया रही हो पर मन की रानी तो राधे रानी ही रही तभी तो वे मथुरा से हस्तिनापुर का चक्कर लगाते रहें। उन सब के बीच राधा ही थी तभी तो उद्धव को भेजा था कि भक्ति और प्रेम क्या होता है वे यह विद्वान समझ सकें।
सुदर्शन चक्र होने के बावजूद हाथ में मुरली होना
सर्व शक्ति मान होने पर भी सारथी बनना
मृत्यु के सर चढकर नृत्य करना
संपत्ति शाली होने के बावजूद गरीब सुदामा से मित्रता निभाना
गज ग्राह युद्ध में नंगे पैर दौड़ लेना भक्त की रक्षा के लिए
अपनी सखी का कर्ज उतारने और समस्त नारी जाति की लाज बचाने के लिए आ जाना
अपने ही भांजे और शिष्य अभिमन्यु की मृत्यु देखना
युद्ध और वियोग दोनों में समभाव रहना और मुख की मुसकान बरकरार रखना यह तो संभव नहीं
वे छलिया भी कहलाए
रणछोड़ दास भी बने
युद्ध किसी भी रूप में हितकारी नहीं ।अपनी द्वारिका को समुंदर में डुबा दी
कर्म करना आसान नहीं होता फिर भी कर्म में प्रवृत्त तो होना ही पडेगा
यह संदेश युगों युगों तक मानव जाति को देना
कृष्ण को समझना इतना आसान नहीं न उनकी श्रीमद्भगवद्गीता को ।वही समझ सकता है जो पूर्ण रूप से कृष्ण मय हो जाए ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे
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