यह आग सुलगती क्यों नहीं है
धधकती क्यों नहीं है
मंद - मंद हो बुझती सी जा रही है
जान कर भी अंजान बने हैं
गलत को भी नजरअंदाज कर रहे हैं
जो हो रहा है वह होने दो
हमें क्यों बवाल में पडने की जरूरत है
शोर मचाने की जरूरत है
प्रतिकार करने की आवश्यकता है
हमारी आवश्यकता तो किसी तरह पूरी हो रही है
समाज कहाँ जा रहा है
देश कहाँ जा रहा है
राजनीति कौन सा खेला खेल रही है
सब फालतू बातें
कोऊ होऊ नृप
हमें का हानि
चेरी छाडी न होहउ रानी
मंथरा की यह पंक्तियाँ हम पर बराबर लागू
हम तो जनता है
हाँ चुनाव के समय जनार्दन बन जाते हैं कुछ समय के लिए
फिर सत्ता की उठक-बैठक जारी
हम तमाशबीन
बस यही भूमिका है हमारी ।
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