Wednesday, 28 September 2022

मन का घाव

टूटता है दिल
दर्द भी होता है
दवा भी होती है
मरहम भी होता है
पर इसे लगाए कौन
कैसे लगाए
टूटने पर आवाज नहीं होती
बिना आवाज हुए ही सब बदल जाता है
बाहर तो नहीं दिखता
अंदर ज्वाला धधक रही होती है
नासूर बनता रहता है
वह फोडा बार बार फूटता है
रिस - रिस कर बहता है
फिर और बडा हो जाता है
हर बार अपने रूप में आ जाता है
यह घाव शरीर का नहीं है
मन का है
एक्सटर्नल नहीं इंटरनल है
बाहर का घाव तो भर जाता है
मन का भरना मुश्किल। 

No comments:

Post a Comment