दर्द भी होता है
दवा भी होती है
मरहम भी होता है
पर इसे लगाए कौन
कैसे लगाए
टूटने पर आवाज नहीं होती
बिना आवाज हुए ही सब बदल जाता है
बाहर तो नहीं दिखता
अंदर ज्वाला धधक रही होती है
नासूर बनता रहता है
वह फोडा बार बार फूटता है
रिस - रिस कर बहता है
फिर और बडा हो जाता है
हर बार अपने रूप में आ जाता है
यह घाव शरीर का नहीं है
मन का है
एक्सटर्नल नहीं इंटरनल है
बाहर का घाव तो भर जाता है
मन का भरना मुश्किल।
No comments:
Post a Comment