Monday, 12 September 2022

वह पहले जैसी बात नहीं

सहेलियां तो वही हैं 
जो पहले थी
हाँ अब वह उम्र नहीं रही
साडी जो पहले करीने से रहती थी अब चार अंगुलियों ऊपर
बाल जो पीठ पर लहराते थे 
अब छटवा लिया है
ऑखों पर जो काजल लगा रहता था अब चश्मा आ गया है
पहले हंसते समय जो दंतपंक्ति चमकती थी
लिपिस्टिक से होठ रंगे होते थे
पावडर और क्रीम से रंगत रहती थी
आज उस चेहरे से वह रौनक गायब है
दांत कुछ हैं कुछ साथ छोड गए हैं 
चेहरे पर झुर्रिया 
बात करते समय कांपते हैं 
जो धाराप्रवाह शब्द निकलते थे
वे अब लडखडाते हैं 
अस्पष्ट निकलती है 
पैरों में भी वह ताकत नहीं रही
अब स्टिक का सहारा है
हाथ भी कांपते हैं 
यहाँ तक कि खाना खाने और चाय पीने में भी
अब कुछ और चीज पर भी कंट्रोल नहीं 
दो घंटे से ज्यादा हो जाए तब वाशरूम की जरूरत 
सांझ होने के पहले ही घर लौट आना
बस , ट्रेन जो दौड़ कर पकड़ लिया जाता था
आज उस पर चढने में ही परेशानी
अब चटपटा खाने से डर
भेलपूरी - रगडा पेटिस , समोसा चाट 
बीते जमाने की बात
अब तो दाल - रोटी ही पच जाएं वही काफी
अब अपनी नहीं चलती
जिनको बडा किया 
वो ही हमें सिखाते हैं 
बचपन में निर्भर थे आज लाचार है
लंगोट से डायपर का सफर जारी है
अब किसी में वह बात नहीं 
न वह स्वतंत्रता न स्वच्छंदता 
सहेलियां तो वही हैं 
हम भी वही हैं 
पर वह पहले जैसी बात नहीं 

No comments:

Post a Comment