प्रगति और विकास कैसे न हो वहाँ
सत्य तो यह है
प्रतिभा को मौका ही नहीं मिलता
कभी किसी कारण से कभी किसी कारण से
कभी आरक्षण
कभी सिफारिश
कभी रिश्वत
कभी बडे लोगों से नाता
प्रतिभा का उपयोग न हो तो वह कुंद हो जाती है
वह किसी और रास्ता अख्तियार कर लेती है
जो बहुत घातक है
चाणक्य और द्रोणाचार्य जैसे गुरु इसके उदाहरण हैं
कर्ण और एकलव्य को कैसे भूला जाए
आज भी न जाने कितने एकलव्य और कर्ण है जिनके साथ अन्याय होता है
यह राष्ट्र की जिम्मेदारी बनती है
मौका दिया जाएं
अपने विकास में भागीदार बनाया जाएं
नहीं तो विदेश में तो मौका है ही
उसके बाद उनकी उपलब्धि को हम गर्व से कहते हैं
ये तो भारतीय है
इंडियन है
मिला क्या उनको देश में मौका ??
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