तुम सही
तब समस्या क्या हुई
गलतफहमियां क्यों बढी
कुछ तो बात होगी
अपने अपने गिरेबान में झांक कर देखें
मैं भी तुमसे प्रेम करती हूँ
तुम भी मुझसे बेइन्तहा प्रेम करते हो
तुम्हारे लिए हमेशा ईश्वर से दुआ
एक खरोंच आ जाएं तो मन विचलित
यह हाल किसी एक का नहीं दोनों का है
ऐसा अपनों के साथ होता है
रक्त से जुड़े है वे
तब भी सबसे ज्यादा नाराजगी उन्हीं से
यह प्रेम और तिरस्कार का खेल चलता रहता है
न मिले तब भी समस्या मिले तो और भी
अपेक्षा ही इन सबकी जड
Take for granted
लेते हैं अपनों को
उनकी अहमियत की कदर नहीं
यह तो फर्ज और कर्तव्य की दुहाई देकर सब रफा-दफा
वही कोई दूसरा करें तो कृतज्ञता व्यक्त करते नहीं थकते
उसको Thank you --- Sorry
बोलते जबान नहीं थकती
अपनों को भी अपना समझा जाएं
उनके हर रूप को स्वीकार किया जाएं
वे भी इंसान है भगवान नहीं
गलती न करें यह तो हो ही नहीं सकता
पूर्ण तो कोई नहीं
ईश्वर भी जब आए पृथ्वी पर तब वे भी नहीं
अपनों का सम्मान, अपनापन इसको दिल से निभाइए
नहीं तो मन ही मन में कुढते रहे ।
No comments:
Post a Comment