Friday, 23 September 2022

मन के बादल

आज धूप कुछ खिली - खिली सी
काले बादलों से मुक्त 
रोज बादल छाये रहते
धूप - छाँव का खेल खेलते रहते
कब बरस न पडे 
यही सोचते रहते
आज अपने पूर्ण शवाब में 
सूर्य भी जी भर कर रोशनी बिखेर रहें 

इन पर के तो बादल छट गए 
मन पर के बादल कब छंटेगे 
क्या ऐसा कोई सूरज आएगा
जो सबको प्रकाशित कर जाएंगा
इंतजार है उस दिन का
जब दिल पडे काले स्याह मिटेगे 
अपने से अपने मिलेंगे 
यह दिल बेकरार है
अपनों को देखे बिना मानता नहीं 
चैन ही नहीं लेने देता
हर सोच में तू ही तू 
यह बात कब समझ आएंगी। 

No comments:

Post a Comment