Friday, 23 September 2022

जय किसान

यह हरी - भरी हरियाली हमसे हैं 
यह गेहूं- मटर की फसले हमसे हैं 
हम पैसा नहीं उगाते अन्न उगाते हैं 
लोगों का पेट भरते हैं 
धरती को सींच - सींच उपजाऊ बनाते हैं 
मिट्टी का सोना करते हैं 
भाई हम नौकरी - व्यापार नहीं 
खेती - किसानी करते हैं
पहचान  हमारी किसी से छुपी नहीं 
मैं किसान हूँ 
इस बात का गर्व है मुझे 
ईश्वर नहीं है हम 
पर हम न होते तो इस जहां में  कोई नहीं होता 
जीने का सहारा नहीं होता
भोजन बिना तो भगवान का भजन भी नहीं भाता
   भूखे पेट भजन न होय गोपाला 
            जय किसान जय अन्नदाता

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