Friday, 9 September 2022

सबसे बडी इच्छा

जब शौक करने की उम्र थी तब शौक न किया
घर - गृहस्थी की जिम्मेदारियों में उलझी रही
जब मौज - मजे के दिन थे
तब पाई - पाई जोड़ने में लगा दी
जब घूमने के दिन थे
तब नौकरी और घर में उलझी रह गई 
जब फैशन करने के दिन थे
तब लोगों के डर से मन मार लिया
कहीं संकोच आडे आया
कहीं जिम्मेदारी 
आज कुछ कमी नहीं है
न वह पहले जैसे हालात है
तब भी सब मुश्किल लगता है
यह वही पैर हैं जो घंटों चला करते थे
बिना काम के भी खडे रहते थे
न जाने कितनी बार सीढियां चढना - उतरना होता था
अब मन तो वही है
शौक भी मरा नहीं है
इच्छाएं भी वैसी ही है
तब मन मुताबिक खाना मिलता नहीं था
महंगे होटल अफोर्ड नहीं कर सकते थे
आज जी भर कर खा नहीं सकते
डर सताता है स्वास्थ्य का
पहले बिन कारण भी हंसते थे
आज बिन कारण ऑसू आ जाते हैं 
पहले अपने पर भरोसा था
आज वह भरोसा डगमगा रहा है
जिन पैरों पर शरीर खडा है
जब वह पैर ही डगमगा रहा है
अपना ही शरीर अपना साथ छोड़ रहा है
तब कहाँ का शौक कहाँ की इच्छा 
बस जीवन गुजर जाएं 
जब तक जीए किसी पर निर्भर न हो
किसी को तकलीफ न दें 
चलते - फिरते ही चले जाएं 
यही सबसे बडी इच्छा है ।

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