Thursday, 13 October 2022

कुछ न कुछ छूट ही जाता है

अपनों को खुश करने की कोशिश में 
कुछ न कुछ छूट ही जाता है
कभी यह नहीं कभी वह नहीं 
कभी ऐसा नहीं कभी वैसा नहीं 
यह हिसाब अधूरा ही रह जाता है
गिले- शिकायतें खत्म होने का नाम ही नहीं लाती
आरोप - प्रत्यारोप का दौर चलता ही रहता है
सबको खुश करने के चक्कर में रहते हैं 
फिर भी बात बिगड़ ही जाती है
सोचते हैं अब ठीक होगा
तब ठीक होगा
इसी उधेडबुन में समय गुजर जाता है
कुछ और नया जुड़ जाता है
किसी को खुश नहीं कर सकते
बस दुखी हो जाते हैं 
अपनों को खुश करने की कोशिश में 
कुछ न कुछ छूट ही जाता है। 

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