सब भेद-भाव छोड़ों
जाति - धर्म
अमीर - गरीब
ऊंच- नीच
सब भूल कर एक हो
रार - झगड़ा कर क्या मिला
बस दुख और अलगाव
अलगाववादी विचारधारा से देश का विकास
संभव नहीं है
सब एक - दूसरे से जुड़े हुए किसी न किसी रूप में
व्यवसाय और व्यापार से
पडोस और घर से
भाषा और बोली से
एक धर्म का चूडियां बनाता है
तो दूसरे धर्म की सुहागिने उसे धारण करती है
केक , पेस्ट्री, ब्रेड , पावरोटी
का कोई धर्म नहीं
सब चाव से खाते हैं
कौन देखता है
यह किस भट्टी में बना है
एक मांस बेचता है
दूसरा उसे खरीदता है
सबकी रोजी रोटी सहयोग से चलती है
किसान का अन्न और सब्जी
आम और अमरूद की कोई जाति - धर्म नहीं
मलीहाबादी आम या देवगढ़ का हापुस
सब चाव से खाते हैं
प्रकृति कभी भेदभाव नहीं करती
तब मनुष्य क्यों??
भारत जोड़ो
सब भेद-भाव छोड़ो।
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