यह उनका घर है यह वे जानते हैं
अपना हक होता है उस पर
जो मर्जी आए सो करें
कहीं भी उठे कहीं भी बैठे
जब वे बडे हो जाते हैं
जब उनका घर हो जाता है
तब वो बच्चों के घर में मेहमान हो जाते हैं
उसे अपना कहने में हिचकिचाते हैं
एक तरह से घर में दुबक कर रह जाते हैं
उस गर्व से नहीं बोलते
एक तरह से निर्भर हो जाते हैं
डर डर कर रहते हैं
बस यही सोचते हैं
जिंदगी किसी तरह कट जाएं
हाथ - पैर चलते रहें
किसी पर बोझ न बने
पता है अब उम्र ढल चुकी है
बूढी हड्डियों में वह ताकत नहीं बची है
अब तो जो दिन शांति से गुजर जाएं अपनों के बीच
वही बहुत है ।
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