गांव की सुबह भी देखी
शहर की शाम भी देखी
गाँव की संझा भी देखी
कुछ फर्क भी देखा
एक की सुबह हुई
मुर्गे की बांग के साथ
सूरज के आगमन के साथ
चिड़ियों की चहचहाहट के साथ
भोर जल्दी हो जाती है
झाडू- बुहारना
दाना - पानी
पशुओं को चारा
कुछ खेत - खलिहान की ओर
सब हो जाता है
तब खटिया पर बैठ आराम से बतियाते हैं
रस - दाना , चाय - पानी करते हैं
थोड़ा राजनीति, थोड़ा गाँव की चर्चा
दोपहर खाकर आराम किया
संझा को मोटरसाइकिल- साइकिल उठाई
चल दिए बाजार की तरफ
आए खाए - पीए और जल्दी सो गए
यह हैं गाँव का जीवन
अब दूसरे की सुबह हुई
गाडी- मोटर की पी पी , पो पो
सूरज दादा का भी आगमन
उनकी तरफ किसी की दृष्टि नहीं
बस सबका ध्यान घडी की ओर
लोकल पकडनी है
ओला- उबर बुक करनी है
रिक्शा मिलेगा या नहीं
ट्रेफिक जाम में फंस तो नहीं जाएगे
बाॅस आज फिर तो नहीं डाटेगा
जल्दी- जल्दी नाश्ता
कुछ ठुसा कुछ छोड़ा
बस खडे खडे चाय पी ली
बैठने की फुर्सत नहीं
टिफिन भी लेना है
नहीं तो फिर वडा- पाव पर दिन काटना है
ऑफिस में सर खफाते रहें
घडी देखते रहें
छूटे और फिर भागे
फिर वही भीड
वही धक्के
कैसे बैसे घर पहुँचे
थक कर चूर
शाम से ही सुबह की तैयारी
इतना फर्क है
शहरी और ग्रामीण जीवन में
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