यह दौर भी हमने देखा है
जब सर गडाए रहते थे किताबों में
उपन्यास और कहानियों में
लाइब्रेरी से , उधार मांग कर , रेन्ट पर
यहाँ तक कि बनिये के लपेटे हुए सामान के कागज से
रात - रात भर जागते थे
कोहनियों के बल लेटे पढते थे
खत्म होने पर ही चैन की सांस लेते थे
हंसते थे , रोते थे , उदास होते थे
जीवन की शिक्षा भी लेते थे
वे पात्र अपने लगते थे
उनके सुख - दुख में समरस होते थे
उस इश्क के सामने कुछ भी नहीं टिकता था
आज हम जीवन की संझा पर है
किताबों के पन्ने भी पीले पड रहे हैं
उनमें रखा हुआ वह पत्ता
वह मोर पंख
वह निशान सब फीके पड रहे हैं
हम पर झुर्रियाॅ पड रही है
उन पर धूल जम रही है
अब हमारी हड्डियों में वह ताकत नहीं
न उनके पन्नों में
वे हमारे साथी रहे हैं हमेशा से
हर पल का साक्षी रहे हैं
अब नजर धुंधला रही है
उन पर एक हाथ फेर लेते हैं
पढने की शक्ति नहीं बची
यह समय का पहिया है
यह बात तो इसने न जाने कितनी बार सिखायी है
हम भी उपेक्षित से महसूस करते हैं
यही तो बात इस पर भी लागू
मोबाइल और लैपटॉप का जमाना है
हमारी तरह उसका भी साथ लोग छोड़ रहे हैं
हम भी वही है
वह भी वही है
बस वक्त वक्त की बात है ।
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