माफ कर दो न
यह कहना जितना आसान है
उतना है भी नहीं
साॅरी केवल लब्जों से नहीं
मन से मांगा हो
तभी क्रियाशील भी
शब्द नहीं है साॅरी
मन की भावना है
अपना स्वाभिमान ताक पर रख
मन को बडा कर
तब वह माफ और माफी होती है
सही भी है
छोटे मन से कोई बडा नहीं होता
टूटे मन से कोई खडा नहीं होता
खुलकर , भूलाकर, भूलकर
तब सही मायनों में वह माफी होगी
प्यार तो होता है पर अहम् आडे आता है
दोनों मसोसकर रहते हैं
उम्र गुजर जाती है
तब उसके पहले ही
छोड दो यह सब
मिल लो
बतियाय लो
पता नहीं कल हो या न हो
ऑखें जिन्हें देखने को तरसती हो
मन बात करने को चाहता हो
तब देर किस बात की ।
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