कौन सा नाता- रिश्ता
सब अपने-अपने में मगन
वह अधिकार नहीं रहा
लडने - झगड़ने की वजह नहीं रही
सब औपचारिक रह गया
उस हक से न किसी के यहाँ जाया जाता
पूछना पडता है
कोई फ्री है क्या
आ सकते हैं क्या
आवभगत की जरूरत नहीं होती
प्रेम ही काफी है
पर जब चेहरा गवाही देता हो
वह खुशी नहीं झलकती आवाज में
वह उत्साह नहीं दिखता
तब लगता है
जबरदस्ती आ गए
रिश्ता मन से निभे दिमाग से नहीं
दिमाग तो हिसाब किताब करता है
मन नहीं
मन पर भावुकता का साम्राज्य रहता है
जब भावना न बची हो
तब वह मिठास कहाँ
रक्षाबंधन एक औपचारिकता मात्र रह गई है
एक धागा जो जोडता था
वह कमजोर हो रहा है
टूट रहा है
टूटन को सब महसूस भी कर रहे हैं
प्रयास तो सबका हो
टूटने और कमजोर होने से
घिसने से बचाना
अभी बहुत कुछ बाकी है
खत्म नहीं हुआ है
तब कस कर पकड़ लो
ऐसा न हो कि बाद में जुड ही न पाए
यह पावन त्योहार दिखावा न रह जाएं
इंतजार जिसका सदियों से रहता हो
वह इस रिसोर्ट और माॅल संस्कृति में खो न जाएँ
मोबाइल और लैपटॉप में कैद न हो जाएं
व्हट्सप और फेसबुक की शोभा न बन कर रह जाएं
फोटों नहीं दिल के धडकन में हो
एक नाल से एक माँ से जुड़ा यह खून का रिश्ता
इस जन्म में तो खत्म नहीं होगा
तब फिर उसकी कदर भी करें।
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