मैं पुरूष हूँ
यह क्या मेरा गुनाह है
मैंने तो अपनी माता को हमेशा सम्मान दिया
और दूसरे रिश्तों को भी
किसी का पोता , भतीजा , भांजा , भाई
दोस्त और पडोसी भी
हमेशा मर्यादा में रहा
सबका ख्याल रखा
इसके बाद भी जब सडक पर चलता हूं
बस और ट्रेन में खडा होता हूँ
डर लगता है
कौन जाने कब कौन सा तोहमत लगा दिया जाएँ
इधर-उधर और सामने देखना भी मना है
नारी सशक्तिकरण का जमाना है
कानून उनके पक्ष में हैं
दोषी हमेशा पुरूष ही हो
यह जरूरी तो नहीं
न जाने कितने निरपराध कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं
झूठे मामलों में फंसाए गए हैं
कभी दहेज तो कभी बलात्कार
कानून ही दंड नहीं देता
यह समाज भी दंड देता है
जब तक सही फैसला होगा
तब तक जिंदगी ही बदल जाती है
जीते जी वह मर जाता है
लोग रास्ते चलना दुश्वार कर देते हैं
कुछ तो नहीं आत्महत्या कर लेते हैं
पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है
बदनाम हो जाता है
अगर समानता का अधिकार है
तब सबका नजरिया भी समान हो
दोषी तो कोई भी हो सकता है
हमेशा पुरूष ही नहीं
औरतें तो इसमें कहीं भी कम नहीं है
सोशल मीडिया का जमाना है
किसी के बारे में अफवाह फैलने में
उसे कुख्यात करने में देर नहीं लगाती
सही बात को जाने बिना
हर घर में लड़के और पुरुष हैं
जरा सोचा जाएं
कभी खुदा न खास्ता उनके साथ ऐसा हुआ तो
बिना सोचे समझे
बिना विचार किए
किसी के बारे में गलत धारणा बनाना
बदनाम करना
यह तो बहुत बडा अपराध है
हो सके तो सबके साथ न्याय हो
अन्याय का साथ कभी न दे ।
No comments:
Post a Comment