Tuesday, 27 June 2023

आज का सच

वह घर था खपरैल का
मिट्टी का घास का 
जमाना बदला
अब उसको कम ऑका जाने लगा
सीमेंट और ईटों का पक्का घर बनने लगा
आदमी की हैसियत का अंदाजा लगाया जाने लगा
अरे उसका तो पक्का घर है
दो मंजिला कोठी है
कच्चा घर को हिकारत की नजर से देखा जाने लगा 
उसमें रहने वालों की भी तुलना होने लगी
अमीरी-गरीबी का भी सवाल उठने लगा
सब इस होड में शामिल हो गए 
दो कमरे का मकान हो पर पक्का हो
घर की मिट्टी भी अपने को असहज महसूस करने लगी
विकास की आंधी ऐसी चली
अब पक्के ही पक्के घर चहुँओर 
जब गर्मी से तपते हैं 
बिजली चली जाती है
तब याद आ जाता है अपना मिट्टी का घर
मिट्टी से नाता तोड़ लिया 
पेड़ से नाता तोड़ रहें 
तालाब और कुएँ को पाट रहे
नलको से पानी भर रहे
वह सदाबहार कुआं 
जब चाहो पानी उचिल लो
नल का तो इंतजार 
बिजली का इंतजार 
हवा की जरूरत नहीं 
ए सी , पंखा ,कूलर तो है
सब बदला 
तब प्रकृति को दोष क्यों 
उसका तो स्वभाव ही परिवर्तन शील है
अब फेसबुक पर डालकर उस मिट्टी वाले घर - आंगन को याद कर रहे हैं कुछ 
सब तो छूट रहा है
वह घर वह आंगन 
वह संयुक्त परिवार 
वह पडोस और रिश्तेदार 
वह दोस्त और मेहमान 
बस घर से ऑफिस 
ऑफिस से घर 
छुट्टी के दिन होटल और रिसोर्ट 
वसुधैव कुटुंबकम की बात दिखावा 
अपनेपन में जकड़ा 
मकडी की तरह अपने ही जाल में बुन कर फंसे रहना
शायद यही आज का सच है ।

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