मिट्टी का घास का
जमाना बदला
अब उसको कम ऑका जाने लगा
सीमेंट और ईटों का पक्का घर बनने लगा
आदमी की हैसियत का अंदाजा लगाया जाने लगा
अरे उसका तो पक्का घर है
दो मंजिला कोठी है
कच्चा घर को हिकारत की नजर से देखा जाने लगा
उसमें रहने वालों की भी तुलना होने लगी
अमीरी-गरीबी का भी सवाल उठने लगा
सब इस होड में शामिल हो गए
दो कमरे का मकान हो पर पक्का हो
घर की मिट्टी भी अपने को असहज महसूस करने लगी
विकास की आंधी ऐसी चली
अब पक्के ही पक्के घर चहुँओर
जब गर्मी से तपते हैं
बिजली चली जाती है
तब याद आ जाता है अपना मिट्टी का घर
मिट्टी से नाता तोड़ लिया
पेड़ से नाता तोड़ रहें
तालाब और कुएँ को पाट रहे
नलको से पानी भर रहे
वह सदाबहार कुआं
जब चाहो पानी उचिल लो
नल का तो इंतजार
बिजली का इंतजार
हवा की जरूरत नहीं
ए सी , पंखा ,कूलर तो है
सब बदला
तब प्रकृति को दोष क्यों
उसका तो स्वभाव ही परिवर्तन शील है
अब फेसबुक पर डालकर उस मिट्टी वाले घर - आंगन को याद कर रहे हैं कुछ
सब तो छूट रहा है
वह घर वह आंगन
वह संयुक्त परिवार
वह पडोस और रिश्तेदार
वह दोस्त और मेहमान
बस घर से ऑफिस
ऑफिस से घर
छुट्टी के दिन होटल और रिसोर्ट
वसुधैव कुटुंबकम की बात दिखावा
अपनेपन में जकड़ा
मकडी की तरह अपने ही जाल में बुन कर फंसे रहना
शायद यही आज का सच है ।
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