साझा करते है सब अपनी जिंदगानी
हमें लगता है
सब कुछ तो पता है
शायद नहीं
इस कहानी की असली बात तो पहुंचती ही नहीं
इधर-उधर की तमाम बातें
असलियत छुपा ली जाती है
वह नहीं बोली जाती
कहानी का सारांश पता चल जाता है संक्षेप में
आरम्भ और अंत भी पता चल जाता है
मर्म नहीं पता चलता
कुछ बना कर कुछ गढाकर
किसी और रूप में प्रस्तुत
वेदना किसी की समझना
हर किसी के बस की बात नहीं
अंतर्मन का द्वंद
हदय की टीस
सब नहीं समझ सके
कहानी सुनने वाला श्रोता
समझता है सब समझ गया
जिंदगी की कहानी
वह भी किसी और की
अपनी कहानी तो समझना मुश्किल
दूसरों की कैसे कोई समझे ।
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