Friday, 7 July 2023

रिम झिम रिम झिम

रिम झिम रिम झिम 
पडती है बरखा की बूँदें 
सावन की है फुहारे
मन हिचकोले खाता 
मन ही मन गीत गुनगुनाता 
मन का मयूर नाचता 
खूब - खूब भीगता 
भीगता तन 
भीगता मन 
जल की बूंदे टप टप टप
केशों में उलझ उलझ जाती
धीरे से गालों को सहलाकर नीचे आती 
सिहरन सी होती 
प्यार उमडता 
लटों को थोड़ा झटकाते 
मृदु मृदु मुस्काते 
पैरों से छप छप 
पानी में खेलकर
बचपन की याद ताजा
जब जब बरखा आती
बचपन और यौवन सब साथ लाती
यादों के झरोखो में हम झांकते 
कुछ याद आकर मन ही मन मुस्कराते 
लजाते और शर्माते 
ठंडी से थरथराते 
फिर घर की ओर लौट आते ।

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