लिखना तो है मुझे
जो आया मन में
जो सोचा मन में
जो भाया मन को
किसी को अच्छा लगें या न लगें
क्या फर्क पडता है
लच्छेदार भाषा न हो
क्या फर्क पडता है
कोई अच्छा कहें
कोई बेकार कहें
क्या फर्क पडता है
बस मैं लिखती रहूँ
मन की भावनाओं को उकेरती रहूँ
कोई पढे या न पढे
क्या फर्क पड़ता है
कोई पढकर प्रशंसा करें
कोई मजाक बनाएं
क्या फर्क पड़ता है
इस दुनिया में तरह-तरह के लोग
मेरी लेखनी बस मेरी है
किसी की गुलाम नहीं
किसी को अच्छा लगें या न लगें
क्या फर्क पड़ता है
लोग बातें बनाएं
कुछ छींटाकसी करें
क्या फर्क पड़ता है
मैं तो लिखती हूँ
बस अपने लिए
अपने सुकून के लिए
लिखना मेरा शौक है
यह कायम रखना है
किसी की बातों को दिल से क्यों लगाऊ
बस जब मन आया लिखूं
जो चाहूँ वह लिखूं
जैसे कहते हैं न
गाना आए या न आए , गाना ,गाना चाहिए
लिखना आए या न आएं
लिखना चाहिए।
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