Sunday, 23 July 2023

वह कोमल पौधा

वह भी  कोमल पौधा हुआ करता था
एक दिन इस पौधे ने वृक्ष का रूप धारण कर लिया
नया - नया दिखने में सुंदर 
हरा- भरा , कोमल नरम पत्तियां 
शाखें भी लचीली , झूलती हुई
जो देखता उसे ही भा जाता
फल - फूल भी आने शुरू हो गए 
अब तो लगे पत्थर पडने
कोई पत्थर मारता 
कोई डाली को तोडता
कोई तने को खरोचता 
न जाने कितने अंधड चले
पेड़ पर खंजर चले
सब कुछ सहता रहा
सबको उसकी जरूरत के अनुसार देता रहा
आज वह बूढ़ा गया है
पतझड़ का समय है
वसंत के समय भी अब लदा- फदा नहीं रहता
जड भी कमजोर हो रही है
खुरच खुरच कर 
काट छाट कर न जाने कितने घाव लिए खडा 
तब भी वह हारा नहीं 
हर जुल्म सहता रहा
आज तो हद हो गई 
कुछ लोग औजार लेकर आ गए हैं 
वह किसी रास्ते का रोडा बन रहा था
उसे हटा देना है 
वहाँ विकास की इमारत बनेंगी
वह शायद घर के फर्नीचर की शोभा बढाएगा। 

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