अमृत छोड़ विष को गटकना है
विषधर को अपने गले में लटकाना है
भोले तो होना है
शक्तिशाली भी
तीसरा नेत्र भी रहना चाहिए
निर्माण के साथ संहार की शक्ति भी होना चाहिए
भभूत और राख से श्रृंगार करना है
महल छोड कैलाश पर्वत पर निवास करना है
जीवनदायिनी गंगा को अपने सर पर बैठाना है
चंद्रमा को भी धारण करना है
औघड़, भूत सबसे संबंध रखना है
शिव और शक्ति साथ
भांग- धतूरा से खुश होने वाले
राक्षजराज रावण के आराध्य
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के भी आराध्य
बिना भेदभाव के
जिनके गले में नागराज
सवारी नंदी हो
दोनों को साथ-साथ ले चलनेवाले
भय मुक्त हो विचरण
बेल पत्र से प्रेम
हर साधारण व्यक्ति के आराध्य
सबको वरदान देने वाले
पूरे परिवार के साथ विराजमान होने वाले
परिवार और समाज के हर वर्ग, हर जीव पर
कृपा दृष्टि बरसाने वाले शिव शंकर
हर कण - कण में शंकर
हर मन में शंकर
भोले बाबा की जय
गौरी शंकर की जय ।
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