मेरी पीड़ा मैं ही जानती हूँ
सुबह-सुबह जब घर का काम निपटा कर
चाय - नाश्ता और टिफिन पैक कर
जल्दी जल्दी तैयार हो घर से बाहर निकलती हूँ
एक हाथ में पर्स और बच्चे का बैग
दूसरे हाथ में बच्चा
ऑटो रिक्शा मिला तो ठीक नहीं तो पैदल ही
बच्चे को प्ले ग्रुप में छोड़ती हूँ
ऑख भर आती है पर किसी तरह अंदर ही अंदर जब्त
बच्चे को रोते देखती हूँ और जबरदस्ती गोद से देती हूँ
तब दिल पर क्या बीतती है यह मुझसे ज्यादा अच्छा कौन जानेगा
आप जाओ यह अंदर जाकर अपने आप ही चुप हो जाएंगा
सही भी है
जिद किससे करेंगा
अकेला वही नहीं है ना
उस जैसे कितने बच्चे हैं
कभी कभार सी सी टी वी देख लेती हूँ
तब भी मायूस हो जाता है मन
घर पर होता तो इसको बादाम पीस कर खिलाती
नाचणी का थेपला बना कर खिलाती
गोद में लेकर दुलराती
जैसे ही ऑफिस छूटा
भागते हुए पहुँचती हूँ
बच्चे को गोद में लेकर चिपटाती हूँ
सारा जहां मिल गया जैसे
यह मेरी नहीं हर वर्किंग वूमैन की कमोबेश यही स्थिति है
कॅरियर और पैसा बनाने के चक्कर में
यह जरूरी भी है
आज की मांग है
अगर लाइफस्टाइल अच्छी चाहिए
बच्चों का भविष्य बनाना हो
तब यह तो करना ही पडेगा
कुछ तो मूल्य चुकाना पडेगा
माँ बने हैं तो फर्ज है ही
लेकिन इस चक्कर में दोनों पीसते हैं
माँ और बच्चा
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