कृष्ण प्रेम में महलों को छोड़ भटकने वाली
केवल प्रेम दीवानी नहीं उस वक्त की सबसे सशक्त नारी
वह नारी जो कभी परम्पराओ के आगे झुकी नहीं
लोक - लाज और कुल की मर्यादा सब छोड़ चली
साधु - संतों के साथ हो ली
दर दर भटकती रही
भजन गाती रही
कृष्ण का गुणगान करती रही
पति की मृत्यु पर सती होनेवाली राजपूतनी नहीं
एक सामान्य और विद्रोहणी नारी
समाज की परवाह न करने वाली
जो किसी को रास नहीं आया
मारने के प्रयास किए गए पर सब असफल
परदा प्रथा को छोड़ा
स्त्री- पुरुष समानता
जिस क्षेत्र पर पुरूषों का एकाधिकार
उसी में अपना नाम स्थापित किया
पुरुष संतों के साथ घूमने वाली
एक राजा की पत्नी
महलों की रानी
बनकर ही नहीं
अपने लिए एक अलग रास्ता अख्तियार किया
जो उनको पसंद था
थोपी हुई परंपरा को दरकिनार किया
बदनामी और लांछनों को सहा
मन ने जो कहा वह किया
आज मीरा को जो हम जानते हैं
वह केवल कृष्ण दीवानी नहीं जो यह कहती रही
मैं तो केवल कृष्ण दीवानी, मेरा दर्द न जानो कोय
आज हम मीराबाई को पढते हैं
किताबों में विद्यमान है वे
भक्ति का जब नाम आता है
तब कृष्ण भक्त में सबसे अग्रणीय
यह वह संघर्षशील नारी है जिसने अपनी पहचान अपने बल पर स्थापित किया ।
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