मन में दब कर पडी बहुत सी बातें
किससे कहें
ऐसा नहीं कोई सुनने वाला नहीं
कुछ कुछ कहा भी
सब कुछ नहीं कहा जाता
कुछ न कुछ छूट जाता है
कुछ दबा लिया जाता है
असली बात तो धरी की धरी रह जाती है
बस आवरण चढा कर कुछ बयां कर दिया जाता है
क्यों डर लगता है
दिल खोलने में
हाँ लगता है
संसार का अनुभव तो यही है
यहाँ जख्मो पर नमक छिड़कने वाले बहुतेरे हैं
अपनों से कह नहीं सकते
दूसरों पर भरोसा कर नहीं सकते
जिस बात को कहना चाहते हैं वही छुपा जाते हैं
हम उस संसार में रहते हैं
जहाँ मीठे अमरूद को काटकर उस पर नमक छिड़क कर स्वाद लिया जाता हो
दिल चीरकर रख दो
नमक छिड़कने वाले बेहिसाब
बेहतर है चुप ही रहा जाएं
दुखवा मैं कासे कहूँ सजनी
एक ही उससे
उस भाग्य-विधाता से ।
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