अपना है या पराया
यह आज तक समझ न आया
कौन क्या है
कैसा है
यही भ्रम रहता है
जो लगता है
जो महसूस होता है
हमेशा वही , सही हो
ऐसा भी होता तो नहीं है
बहुत कुछ स्वप्न देखता है
सपना भी कहाँ अपना होता है
वह भी तो भ्रमित रहता है
यह मन भी कभी-कभी नहीं होता अपना
उस पर रहता किसी और का अधिकार
जब हम ही अपने नहीं
तब कोई और कैसे होगा अपना
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