पंडित जी बताते हैं
टेलीविजन के सामने बैठ जाती हूँ
यह जानती हूँ
होगा वही जो होना है
फिर ऐसा क्यों??
हम सब जानते हैं
समझते हैं
फिर भी मन को समझाते हैं
वे बहुत कुछ बताते हैं
कुछ उपाय करना
उसमें मुझे विश्वास नहीं
विश्वास नहीं फिर विश्वास क्यों
ये ईश्वर नहीं है यह भी पता है
दिमाग सब जानता है
दिल भावना में बहता है
विश्वास और अविश्वास
एक साथ ही
एक ही शख्स पर
यह कैसी स्थिति
बहुत कुछ हम नहीं चाहते हैं
यह भी पता होता है यह ठीक नहीं है
फिर हम वह सब करते हैं
यह होता रहता है
सबके साथ भी
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