Tuesday, 22 August 2023

पेट सबसे ऊपर

मैं पढता हूँ 
मैं गुनता हूँ 
किताबों के संग रहता हूँ 
हंसता हूँ 
रोता हूँ 
गाता हूँ 
बतियाता हूँ 
बटोरता हूँ 
बाँटता हूँ 
सुनाता हूँ 
यह सब करते करते मैं स्वयं किताब बन जाता हूँ 
इतना संचित कर लेता हूँ 
सोचता हूँ जितना दे सकूं 
दिया करू 
वह भी मुफ्त 
लेकिन यहाँ ज्ञान नहीं 
भाषण नहीं 
रोजी - रोजी की दरकार है
किताब नहीं भोजन
तभी तो जब कोई कहता है कि 
पढा लिखाकर क्या होगा
मेहनत- मजदूरी करेगा तो चार पैसे आएंगे 
घर चलेगा , परिवार चलेगा 
पेट सबसे ऊपर ।

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