इन्हीं के इर्द-गिर्द डोलती जिंदगी
मर - मर कर जमा किया
कौडी- कौडी जोड़ा
न जाने क्या-क्या त्यागा
तब यह पास आया
संतति के लिए क्या-क्या न किया
सामर्थ्य से ज्यादा
रात - दिन एक कर दिया
स्वयं की इच्छाओं को दरकिनार किया
अपने लिए न सही इनके भविष्य सुरक्षित करने का प्रयत्न
यह भी भ्रम है
दोनों कब छोड़ जाएं
कह नहीं सकते
कहावत है ना
पूत , सपूत तो धन संचय क्यों
पूत , कपूत तो धन संचय क्यों ।
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