किसी को खो न दू , इस बात से डरता रहा
कोई मेरी बात का बुरा न मान जाएँ
इस बात का ख्याल रखता रहा
यह करते - करते अपने को भूलता गया
दूसरों की परवाह की , स्वयं को नजरअंदाज करता रहा
सालोसाल बीतता गया
यह सिलसिला चलता रहा
मन को मारता गया
दूसरों की इच्छा के आगे झुकता गया
वे अपने थे उनको खो न दू
यही सोचकर सब करता रहा
इस चक्कर में वे अपने रहे न रहे
स्वयं को खो दिया मैंने
यह आना - जाना
यह खोना - पाना
क्या इसी के इर्द-गिर्द है जिदंगी
अपने , अपने न हो सके
हम स्वयं के न हो सके
अब सोचता हूँ
क्या सही किया
क्या गलत किया
दूसरों की नजरों से खुद को तौला
अपनी नजर को नजरअंदाज कर दिया
बहुत कुछ खो दिया ।
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