शारीरिक प्रताड़ना ही हिंसा नहीं होती है
मानसिक हिंसा भी होती है
शाब्दिक हिंसा भी होती है
हिंसा का यह स्वरूप शारीरिक से ज्यादा खतरनाक होता है
शरीर की चोट तो भर जाती है
मन की चोट ताउम्र टीसती रहती है
मन की अग्नि में जलती रहती है
तीर - बाण- भाला - लाठी ये कम कारगर है
किसी को नीचा गिराना हो
किसी को पप्पू साबित करना हो
किसी को चरित्र हीन बताना हो
किसी का पूरा जीवन ध्वस्त करना हो
तब शब्द बहुत उपयोगी है
शब्दों का मायाजाल अनुपम है
यह बडी तेजी से फैलते है
अपना परिणाम दिखाते हैं
दोषी न होते हुए भी दोषी बना दिया जाता है
यह एक तरह का कुचक्र है
व्यंग्य में कितनी शक्ति होती है
इसका परिणाम तो महाभारत में दिख ही गया है
जाति - धर्म को लेकर छींटाकसी
यहाँ तक कि प्रान्तों के बारे में धारणा
अरे वह फलाना
वो लोग तो मूर्ख होते हैं
अरे उस जाति का
वो लोग तो गंदे होते हैं
कहीं एक घटना होती है तो उस प्रान्त के सारे लोग वैसे ही हो जाते हैं
अमेरिका हमको क्या समझता था यह तो हमें पता है
हमारे अपने भी न जाने हमको क्या क्या समझते हैं
अपने देश में अपने मोहल्ले में अपने समाज में
न जाने कितनी भ्रान्तियाँ फैली हुई है
यह सब अनपढ़ करते हैं ऐसा नहीं
पढे - लिखे लोग भी इसमें शामिल है
रास्ते का मजदूर हो या संसद का नेता
संवाद देखिए उनका
शाम को प्रवक्ताओं के डिबेट देखिए टेलीविजन पर
कितना शब्दों की मर्यादा का पालन करते हैं
देश की समस्याओं से लेना - देना नहीं
वह पहले क्या थी
वह पहले क्या था
उसका दामाद कौन तो उसका साला कौन
यह क्या चल रहा है और कब तक
जो भी मुखिया है अपने दल के
वह ऐसे कैसे बढावा दे रहे हैं
कटुता से मौनता भली है
बोलो तो अच्छा नहीं तो मत बोलो ।
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