Thursday, 14 September 2023

औरत -- मर्द

औरत बिकती है
आदमी खरिदता है
औरत को तवायफ और वेश्या की संज्ञा 
उनकी ओर तिरस्कृत दृष्टि 
सबसे अधम 
खरिदने वाले का कुछ नहीं 
उसको तो कोई जानता भी नहीं 
चुपचुपाकर वह अच्छा बने रहना चाहता है
औरत जिस्मफरोशी भी करती है 
तो सरे बाजार में 
वह सच को स्वीकार करती है
अपनी मजबूरी को जानती है
उसका कोई शौक नहीं 
आदमी खुशी से जाता है उस बाजार में 
अगर कोई खरिदे ही न तब
बाजार ही बंद हो जाएंगा 
आदमी यह नहीं चाहता
कभी शोषण के नाम पर 
कभी देवदासी के नाम पर
कभी पूजा - आध्यात्म के नाम पर 
कभी भीड़ के नाम पर 
इससे भी आगे
जबरदस्ती और बलात्कार 
वह औरत को व्यक्ति नहीं समझता
अपने जैसा नहीं समझता
वह स्वंतंत्रता और स्वच्छंदता चाहता है
औरत के लिए सीमा रेखा खींच रखता है
उसको पता है
जिस दिन यह उठ खडी होगी 
प्रतिकार पर उतारू हो जाएंगी 
वह कहीं का नहीं रहेगा 
इतिहास गवाह है
जब जब औरत उठ खडी हुई है 
प्रतिकार किया है 
अपने को साबित किया है
तब तब वह मर्दों से भारी पडी है
वह शक्ति है
धीरज और सहनशीलता के साथ विध्वंसक भी है
सही है भी
 औरत ने जनम दिया मर्दों को
 मर्दों ने उसे बाजार दिया 

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