मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता है
अपने बच्चे तो हमारी जान है ही
उनमें ही अटकी रहती है हमारी जान
उस जान की जो जान है
वह तो कैसे न प्यारी हो
दिल में बसती है
अपने नाती - पोते की सूरत
अपना बचपन अपने बच्चों के साथ तो साझा नहीं कर पाते
उनके साथ करते हैं
उन्मुक्त हो
जिम्मेदारी नहीं रहती
बस खेलना - खिलाना
बच्चे के साथ बच्चा बन जाना
इससे ज्यादा खुशी क्या होगी
जीने की इच्छा बढ जाती है
स्वर्ग का सुख धरती पर ही मिल जाता है
और क्या चाहिए जिंदगी में ।
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