खूब खेलूँ- कुदू और मस्त से सो जाऊं
माँ डांटती रहें मैं मटरगश्ती रहूँ
खाने में ना नुकुर करती रहूँ
नहाने - धोने में भी आलस करती रहूँ
बस स्टॉप पर मस्ती करती रहूँ
स्कूल में डांट खाती रहूँ
पनिशमेंट स्वरूप कक्षा से बाहर या फिर बेंच पर खडे रहूँ
दोस्तों संग खो खो और लपाछपी खेलती रहूँ
उडती पतंग को लंगड डाल पकडती रहूँ
फटाफट सीढियां चढू
चलते - चलते गिरती पडूँ और फिर उठ खडे हो जाऊं
जब मन आया तो जोर जोर से हंस लू
जब मन आया तो बुक्का फाड रो लू
कौन क्या बोलता है मन पर न ले लूँ
पागल, सनकी , शैतान सब उपाधियों से नवाजने पर विचलित न होऊ
कंधे पर बस्ता और हाथ में बटाटा बडा खाते खाते पानी में छप छपा कर करते जाऊं
कपडा साफ है या गंदा उसका ख्याल न करते जाएं
बिना बात पर ही ही हा हू करते जाऊं
कितनी बातें कितनी यादें
बचपन की मन में समाई
अब न वह खुलकर हंसना
न जी भर कर सोना
न वह बेफिक्री और मस्ती
सब छूट गए
हम जो बडे हो गए
अब बात दिल पर लगती है
अब हर किसी पर शक होता है
अब अपनी तो छोड़ों लोगों की पडी रहती है
लोग क्या कहेंगे
इन लोगों के चक्कर के चक्रव्यूह में फंस कर रह गए हैं
झुठी प्रतिष्ठा और रोजी रोटी के चक्कर में चकरघिन्नी की तरह घूम रहे हैं
याद कर रहे हैं
यह भी एक दौर है वह भी एक दौर था ।
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