Thursday, 14 September 2023

घर की तलाश

जगह-जगह घूमा
नित नया बसेरा
कुछ रास न आया
कितना भी खास था
वह अपना न था
घर की तलाश में भटकता रहा
सुकून तलाश  करता रहा 
एक घर तो हो अपना 
जिसमें सब मेरे मन का हो
किराया का उधार का 
उसमें मन नहीं रमता 
अपना कहने को हिचकता 
घोंसला अपना ही भला
वह वीराने में हो या खलिहानों में 
पहाड़ों पर हो या कंदराओं में 
छोटा हो या बडा हो
फर्क पडता है 
कारण कि वह अपना होता है ।

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