Monday, 2 October 2023

हमारे पितर

पितर पक्ष चल रहा है अपनों को याद करने का समय 
क्या अपने भुलाएँ जा सकते हैं 
अपने तो हर रोज याद आते हैं और हर मौके पर
अरे बाबा ने यह किया था
अरे बाबूजी ने वह किया था 
अरे मेरी बहन ऐसी थी आज वह होती तो 
ऑखों में ऑसू आ जाते हैं याद कर
कभी-कभी मुस्कान भी आ जाती है
जरूरत पडने पर लगता है वे लोग होते तो कैसा होता
उनको याद क्या करें जिनको हम कभी भूले ही नहीं 
वे हमारी जिंदगी से जुड़े हुए हैं 
उनका योगदान है वह साथ ही रहेगा 
वे हैं या नहीं  
यह दिगर बात है 
बाबूजी कहा करते थे कि तू चाहती है कि मैं जिंदा रहूँ 
अपने फायदे के लिए और हंसते थे
वे बुद्ध से प्रभावित थे 
सही है यह दुनिया तो स्वार्थ पर ही टिकी है
हम सब चाहते हैं अपने लोग को जीवित देखना 
अपने आस-पास रहना हमारे काम आना
स्वार्थ वश ही सही
क्योंकि हमें पता है कि इनकी वजह से हमारा जीवन आसान हो गया है
जी तो सब ही लेते हैं पर जीना अलग-अलग होता है
उस बच्चे से पुछिए जिसके माता या पिता असमय छूट गये हो 
माँ- बाप का साया 
दादा - दादी का प्यार 
बहन - भाई का स्नेह 
और भी न जाने कितने रिश्ते 
चाचा - मामा - बुआ इत्यादि 
उनकी जगह कोई ले सकता है
व्यक्ति अकेला कुछ नहीं  होता
ये सब लोग उसमें समाएं हुए हैं 
पितृ को हम याद करते हैं  पितृ भी हमको कहाँ भूलने वाले 
जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी ।

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