स्कूल में पढ रही थी
हम लोग वालकेश्वर रहते थे और स्कूल ऑपेरा हाउस में था
बेस्ट की बस से जाते थे
एक बार बारिश हो रही थी और मैं छाता घर पर भूल गई थी
बाबा मुझे लेने के लिए पहुंचे पहले रेनकोट खरिदा प्रार्थना समाज से उसके बाद स्कूल के गेट पर खडे रहें
तब तक तो मैं घर आ चुकी थी
फोन और मोबाइल का जमाना तो था नहीं
बहुत देर बाद बाबा आए तो वह गुलाबी रंग का प्रिन्टेड रेनकोट
उस रेनकोट को मैं आज तक भूली नहीं
जब बरसात होती है या किसी को रेनकोट पहनते देखती हूँ तो अपने बाबा की याद ताजा हो जाती है
यादें तो बहुत हैं
इस पितृपक्ष में यह याद अपने बाबा को समर्पित करती हूँ ।
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