हम लोगों में कभी लडाई- झगड़े और तू तू मैं मैं
न कोई वाद - विवाद न कोई शिकवा - शिकायत
पति ने बडे आनंदित हो कहा पत्नी से
पत्नी ने एक बार कनखियों से देखा
चेहरे पर एक व्यंग भरी मुस्कान आई
कहना तो चाहा पर कह न पाई
कौन इस पत्थर पर अपना सर मारे
हदयहीन आदमी से कौन बहस करें
मन में कहने लगी
लडाई झगड़ा तो उनमें होता है जिनमें प्यार होता है
नोक झोंक तकरार तो वहाँ होती है जहाँ मन को आजादी मिलती हो
यहाँ तो जब देखो
त्योरियां चढत ही रहती है
बस सब अच्छा है यही सुनना है
कुछ बोलो तो मन आहत हो जाता है
कुछ सुनना नहीं है
न अच्छा न बुरा
न सही न गलत
बस मैं ही सबसे अच्छा
मेरे जैसा कोई नहीं
इसी गफलत में जिंदगी गुजार दी
क्या रूठेगा वह जहाँ कोई मनुहार करने वाला नहीं
क्या जिद करेगा वह जहाँ जिद की कोई जगह नहीं
कौन सी बात क्या बखेडा खडा कर ले
इस बात से डर
मुख पर मुस्कान बिखेरतो रहो
अपनी इच्छाओं का गला घोटते रहो
सब कुछ छिपाते रहो
हर हाल में दुनिया को अच्छा दिखाते रहो
कुछ विरोध किया तो यह सुनो
मार खाने लायक काम ही किया है
कुछ कहना नहीं है
बात भी नहीं करना है
उस पर भी प्रॉब्लम
हमसे बोला क्यों
हमको टोका क्यों
मुर्ति बन कर रहो
जैसे मुर्ति के चेहरे पर मुस्कान पर दिल बेजान
बस पत्नी ने यह सोचते सोचते एक नजर डाली
पति ने सोचा
मैं कितना अच्छा, मेरे जैसे दूसरा कोई नहीं
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