जो अपनी चांदनी फैलाता है
कभी घटता कभी बढता है
पूर्णिमा की रात को पूर्ण शबाब में निखरता है
अमावस की रात अंधेरे से ढक जाता है
कभी-कभी उस पर ग्रहण भी लग जाता है
चाॅद की चाल बदलती रहती है
एक दिन की यह बात नहीं
हर वक्त का साथ है
कभी तुम चाॅद जैसा मत बन जाना
चाॅद तो वही है
पर आज का कुछ खास है
दाग तो उस पर भी है
हाँ अपने को दागदार मत होने देना
वह चाँद तो सबका है
तुम चाँद तो मेरे हो
छलनी से निहारती
हर हरकत पर नजर हमारी
तुम बस चांदनी सा उजाला फैलाना
नहीं बहुत तेज शुभ्र और शीतल
बस जीवन कट जाएंगा
इस पर कभी अमावस ना आए
हमेशा चमकता रहें
मेरी मांग का सितारा
हर सुहागन की होती है यही कामना
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