कुछ लेकर नहीं जाते हैं
जाते अकेले ही हैं
बस अपनी यादें छोड़ जाते हैं
क्या सच यही है
नहीं इससे परे कुछ और ही है
वास्तविकता तो यह है
वे अकेले नहीं जाते
हमारी खुशी हमारा सुख चैन भी उनके साथ ही जाता है
वे बस शरीर से जाते हैं
फोटो में टंग जाते हैं
माला - फूल चढता है
जो उस फोटों को रोज रोज देखता है
उनके मन से पूछो
उनके बैठने के स्थान से पूछो
उनके लाए सामान से पूछो
उनकी हर बार टोकने की आदत से पूछो
उनके टी वी के सामने खडे होने की आदत से पूछो
उनकी हर हरकत याद आती है
लगता है
मुस्करा कर पूछ रहे हो
क्यों हम तो नहीं
अब कैसा लगता है
अब कोई शिकवा शिकायत नहीं ना
यही तो बात है
है ना बहुत है ।
No comments:
Post a Comment